आरके श्रीवास्तव की प्रेरणादायक कहानी (सोशल मीडिया से)
आरके श्रीवास्तव की प्रेरणादायक कहानीविश्व साक्षरता दिवस 2025: हर साल 8 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाया जाता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि साक्षरता केवल पढ़ाई नहीं, बल्कि अपने अधिकारों को समझने और समाज में सम्मान के साथ जीने का भी अधिकार है। इस अवसर पर शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर जोर दिया जाता है।
संघर्ष से सफलता की ओर: आरके श्रीवास्तव की कहानी
संघर्षों से निकला उजाला: भारत का एक साधारण लड़का, जो अब हजारों गरीब परिवारों को साक्षर बना रहा है। आरके श्रीवास्तव, जो 1 रुपये की गुरु दक्षिणा लेकर पढ़ाते हैं, ने गरीबी के अंधेरों को पार कर अपने सपनों को साकार किया और लाखों जरूरतमंदों को नई दिशा दी।
गरीबी में पले-बढ़े, मेहनत से आसमान तक पहुंचे
बिहार के रोहतास जिले के बिक्रमगंज में एक गरीब परिवार में जन्मे आरके श्रीवास्तव का बचपन कठिनाइयों से भरा था। पिता के निधन के बाद परिवार आर्थिक संकट में आ गया।
आरके के बड़े भाई शिव कुमार ने परिवार की जिम्मेदारी संभाली, लेकिन जब वह भी चले गए, तो आरके पर घर की पूरी जिम्मेदारी आ गई।
ऑटो रिक्शा उनकी एकमात्र उम्मीद बन गई, जिससे घर का खर्च चल सके और पढ़ाई जारी रह सके। आरके के मन में एक ही संकल्प था—
“परिस्थितियाँ मेरी मंजिल तय नहीं करेंगी, मेरी मेहनत और सपने करेंगे।”
IIT तक की यात्रा
IIT तक की जंग: किसी ने नहीं सोचा था कि एक दिन गांव के एक साधारण ऑटो चालक का सफर राष्ट्रपति भवन तक पहुंचेगा।
आरके श्रीवास्तव ने अपनी मेहनत से खुद को एक प्रसिद्ध गणित शिक्षक बना लिया। उन्होंने 950 से अधिक छात्रों को IIT में प्रवेश दिलाया है।
शिक्षा का असली मूल्य शिक्षक जिसने बदली हज़ारों ज़िंदगियाँ
आरके श्रीवास्तव ने अपने करियर को छात्रों की सफलता के लिए समर्पित कर दिया है।
शिक्षा ही सबसे बड़ा धन
आरके श्रीवास्तव का मानना है कि शिक्षा सबसे बड़ा हथियार है।
“ज्ञान बाँटने से घटता नहीं, बल्कि और बढ़ता है। एक शिक्षक की सबसे बड़ी संपत्ति उसकी तनख्वाह नहीं, बल्कि उसके छात्रों की सफलता होती है।”
आरके श्रीवास्तव का जीवन यह संदेश देता है कि “जो परिस्थितियों से हार मान ले, वह साधारण है। लेकिन जो हालातों को सीढ़ी बनाकर दूसरों के सपनों को पूरा करे, वही सच्चा गुरु है।”
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